कुंडलिनी जागरण भाग -2

भाग:-2
कुंडलीनी शक्ति कैसे जागृत किया जाता है?
–गगनगीरीजी महाराज
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👉 आध्यात्मिक क्षेत्र मे और स्थूल जगत के लिए कुदरत ने ये मानव शरीर का विज्ञान बहुत अद्दभुत रहस्य पूर्ण बनाया है. आध्यात्मिक क्षेत्र मे श्रेष्ठ मार्ग योगक्रिया ही है. योगक्रिया करने के लिए प्रथम आहार के माध्यम से शरीर मे वात-पित्त-कफ ये तीनो दोषो को कंन्ट्रोल स्थिर करना पडता है उनके बिना आप योगक्रिया करने जाओगे तो आपका शरीर रोगिष्ट बन जाएगा. रोगिष्ट कैसे बनता है ईसिका वर्णन मैंने दुसरी पोस्ट मे किया है. आप देखलेना योगक्रिया मे आपका शरीर शुद्धिकरण प्रथम आवश्यकता है, जरुरी है, ये ही कारण से योगक्रियाओ के आठ आयामो मे आहार आयाम दिया है, आपका अपान वायुं दुर्गन्ध वाला नहीं होना चाहिए, आपको कबजियात नहीं रहना चाहिए, शरीर शुद्धिकरण करके आप तीनो आसन मेसे आपके शरीर को अनुकुल होवे ईस आसन पे बैठ के कमर से लेकर मस्तक तक करोडरज्जुं बिलकुल सीधी लीटी मे टट्टार बैठ के आप शरीर को शिथिलीकरण क्रिया से आपका शरीर बिलकुल ढीलाढफ (शरीर फ्री कर देना) छोडदो, शरीर का कोईभी अंग या स्नायुं पकडमे नहीं होना चाहिए, सुक्ष्मणा नाडी चालुं करने के और शिथिलीकरण क्रिया आप मेरी पोस्ट मे देखलेना. ईसिके बाद आप आंखों को बंध करके अपनी आंतरिक नजर ललाट पे आज्ञाचक्र पे स्थिर करदो. आंतरिक नजर नीचे नही पडनी चाहिए ये बात की आप खास ध्यान लेना ईसके बाद आप अपने श्वास की क्रिया पे ध्यान दो ईसिके बाद आप दिर्घ प्राणायाम शुरु करदो, सामान्य श्वसन क्रिया चार से पांच सेकन्ड की होती है वो श्वसन क्रिया पे ध्यान देकर आपको छे से सात सेकन्ड करना है, शुरु मे अंदाजसे श्वास लेने की लंबाई छे से सात सेकन्ड तक लेना और श्वास छोडने की क्रिया मे भी छे से सात सेकन्ड तक लो. कुंभक करना नहीं ईसि तरीके से आप 20 से 25 दिन तक हरदिन छे से सात सेकन्ड तक श्वास लिया करो और छोडा करो. 20 से 25 दिन मे आपको सामान्य से बढकर छे से सात सेकन्ड तर का सिध्ध हो जाएगा ईसिके बाद फिर दो से तीन सेकन्ड बढावो, श्वास लेने मे और श्वास छोडने मे दोनो मे दो से तीन सेकन्ड बढानेसे आपकी श्वास की गति 9 सेकेन्ड से 10 सेकन्ड तक की हो जाएगी ऐसी गति फिर 20 से 25 दिन तक रखो .ईसिलिए आपको 9 से 10 सेकन्ड तक श्वास सिध्ध हो जाएगा लेकिन ये श्वास की क्रिया करने से साथ आपको ये भी ख्याल रखना पडेगा की आपकि आंतरिक नजर ललाट पर स्थिर है की नहीं ये क्रिया के साथ ही आंतरिक नजर आपकी ललाट पे ही होनी चाहिए ये बात का आपको तीन से पांच मास तक खयाल रखना पड़ेगा, आंतरिक नजर स्थिर नहीं होगी तो आप कितना भी सालो तक प्राणायाम करोगे तो कोई मतलब का नही रहेगा, सिर्फ आपका शरीर निरोगी बनेगा. आध्यात्मिक क्षेत्र मे फायदा नही मिलेगा ईसिलिए आपको आपकी आंतरिक नजर ललाट के स्थान से नीचे नही गीरनी चाहिए ये बात को आपको खास ध्यान लेनी पडेगी, अब जब आपको 9 से 10 सेकन्ड का श्वास सिध्ध हो जावे बाद मे आप 20-20 दिन के अंतर पे दो से तीन सेकन्ड बढाते जाओ और श्वास लेने की क्रिया और श्वास छोडने की क्रिया सिध्ध करते करते आसन पर बैठ ने का समय भी साथ मे बढाते जाओ, कमर से नीचे का भाग आपका हिलना नही चाहिए. कमर से उपर का भाग भी आपकी मरजी (ईच्छा) से हिलना नही चाहिए लेकिन कमर से उपर के भाग मे प्राणायाम के समय शरीर मे आंचके आते हैं. वो आंचके आपको रोकना नही उसको आनेदेना जितना भी आंचके -खेंचाण आए ईतना आने देना लेकिन कमर से नीचे का भाग हिलना नही चाहिए ईसि तरीके से हरदिन आसन का समय बढाते जाओ. आप आसन पे ईतना समय बैठना की आपके शरीर मे किसिभी प्रकार की कोई तकलीफ आती तो उस समय आपको आसन पे से उठ जाना. शरीर के साथ कभी भी जबरदस्ती मत करना बैठ मे मे ईसि तरीके से आप आसन पे समय बढाते जाओ और धीरे-धीरे श्वास लेने की और छोडने की क्रिया मे 20 से 25 दिन के अंतर पे सेकन्ड बढाते जाओ और आंतरिक नजर नीचे ना गिरे उसका भी आप ख्याल रखा करो, ये ही रीति से आपको प्राणायाम और ध्यान बढाते जाओ शुरु शुरु मे पांच से छे मास तक आपका ध्यान श्वसन क्रिया मे ही होना चाहिए. पांच से छे मास बाद आप आपका ध्यान श्वसन क्रिया पे रखना भूल जाओ और अपने ललाट पे जो प्रकाश दिखता है वो ही प्रकाश को आप आंतरिक नजर से देखते जाओ, प्राणायाम करते जाओ अब आपको दो ही चीज का ख्याल करना है. ध्यान ललाट पे और प्राणायाम चालुं ईस तरीके से आप कायम के लिए सुबह एक बार और शाम को एक बार बिलकुल भुखा पेट ये क्रिया कायम के लिए करते जाओ….
प्राणायाम की भी श्वास लेने की क्रिया मे और छोडने की क्रिया मे समय बढाते जाओ ये तरीके से आप दो साल निकल दो. दो साल के बाद तो ये शरीर अपनेआप हरकोई क्रिया करने लगेगा श्वास की क्रियाए भी ये शरीर अपने आप बढाते जाएगा. दो साल के बाद आपको एक ही ध्यान रखना हैं कि आपकी आंतरिक नजर ललाट पे स्थिर करके प्रकाश देखना है वो ही प्रकाश को आप झांख झांख कर ( एक चित्त) होकर देखा करो. ईसिको ही ध्यान कहा जाता है. अब आपको ये ही प्रकाश सुबह-शाम देखना है और जो भी प्रकाश का प्रकाश दिखे कैसे भी आकार का प्रकाश होवे कभी प्रकाश होवे कभी अंधकार भी आते है बस वो ही सब जो दिखे आप देखते ही रहो देखते ही रहो. ये पूरी क्रिया को ईसि तरीके से आप हरदिन क्रिया करो और समय बढाते जाओ अब आपको आसन का हरदिन समय बढाते जाना है जैसे जैसे आपका आसम का समय बढते जाएगा वैसे वैसे ही आप कुदरत का नजारा देखते ही जाओ ये ही तरीके से योगक्रिया शुरु होती हैं ये योग क्रिया की ही पुरी और सही क्रिया मैंने आपको बताई है.
“” दुसरी कोई भी क्रिया मैं जानता नहीं हुं. और शास्त्रो का ज्ञान भी मुझे नही है. मैं अनपढ़ हुं, मेरा आत्मा जो कहता हैं वो ही मे मानता हुं “”

ललाट पे आंतरिक नजर स्थिर करने के लिए चार से पांच मास के पीरियड का एक तंत्र है तंत्र किये बिना कभी किसिकी आंतरिक नजर ललाट पे स्थिर नहीं होती. ललाट पे आंतरिक नजर स्थिर करने के लिए चार से पांच मास तक ये तंत्र करना फरजियात है ये ही तंत्र ये योगक्रिया की गुरुचावी कहा जाती है ईसिलिए ये तंत्र मैं फेसबुक (सोसियल मीडिया) पे नही रख शकता पात्रता देखकर ये तंत्र बताया जाता है ये ही तंत्र योगक्रिया की चावी हैं. जो गुरु परंपरा मे ये चावी दिया जाता है ये तंत्र का कभी भी कही भी आपको लिखा हुआ नहीं मिलेगा.

दो साल ऐसे जाने के बाद आप हरदिन ओमकार का जाप मानसिक रीतिसे जपा करो. जाप शुरु करने से पहले आप शिवजी की मानसिक पूजा भी हरदिन किया करो बाद मे मानसिक पूजा करने के बाद मे आप कोईभ एक “”” गति-लय-उच्चारण”””” सभी मे सामनता रहेवे ये रीती से ओमकार का जाप मानसिक जपा करो और प्रकाश देखा करो बस ये ही सभी क्रियाए आगे बढाते जाओ. किसिका भी आपको मार्गदर्शन लेने की जरुरियात नही है.
मैं ने जितना आपको बताया ईतना ही आप किया करो मित्रो चार से पांच साल के बाद आपको मेरा ये शब्दों आपकी सामने आ जाएगा तब आप मुझे जीवनभर याद करोंगे. किसिभी प्रकार के शास्त्रो पढने की आपको जरुरत नही किसिकी सलाह लेने की आपको जरुरत नही, सिर्फ एक साल के लिए मेरे शब्दों पर विश्वास करके आप देख लीजिए ये आपके जीवन का आपने एक साल अज्ञान अवस्था मे बिताया था ऐसा मानकर एक साल ईतना आप करो. बाद मे आपको मालुंम होगा आपका जीवम बदल जाएगा. एक साल के बाद आपको कुदरत का नजारा अवश्य देखने मिलेगा. ईसिमे कोई शक मत रखना. एक साल मे आपका प्रथम चक्र मूलाधार चक्र चालुं हो जाएगा. जागृत हो जाएगा. ईसिमे कोई शंका नही. मूलाधार चक्र चालुं होगा तब ही धीरे-धीरे आपका संचय मिटता जाएगा ईसिमे भी कोई शंका नही. प्राणायाम मे कुंभक कभी मत करना जब शरीर को कुंभक की जरुरत पडती है तब ये शरीर ही अपनेआप कुंभक क्रिया करती हैं. मूलाधार चक्र जागृत होने से पहले मूलाधार चक्र पे दबाव आने लगेगा, धडकने तेजी से धडकने लगेगा, जब ऐसा होवे तब समजलेना आपकी कुंडलीनी शक्ति जागृत हो रही हैं ये जागृत होगी तब हरदिन वराळ(बाष्प) का दबाव आपके मूलाधार चक्र पे पडमे लगेगा, वराळ (बाष्प) गोल-गोल घुमती घुमती उपर की ओर चढती हैं ईसिका भी आपको शरीर मे अनुभव होगा अब हम चक्रो के बारे मे तीसरे भाग मे बात करेंगे….
(क्रमश:)

1 thought on “कुंडलिनी जागरण भाग -2

  1. प्रणाम नहोदय. मैंने तो कभी आज्ञाचक्र पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मैं प्राणायाम व आसन के समय मूलाधार व स्वाधिष्ठान पर ही कुण्डलिनी का ध्यान करता हूँ. मेरा ध्यान तो अच्छा लगता है. कृपया स्पष्ट करें.

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