भाग:-3
कुंडलीनी शक्ति
चक्रो की जागृति
–गगनगीरीजी महाराज
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👉 योगक्रिया के माध्यम से मानव शरीर के माध्यम से जब हम हरदिन प्रैक्टिस जारी रखते हैं तो हमारे विर्य का ओजस मे रुपांतर होने की क्रिया जब आगे उठकर पहले चक्र पे आती है तो वो वराळ (बाष्प) साडा तीन (3/2) गोल चक्कर घुमकर पहला चक्र मूलाधार पे उनका अथडानण-दबाव-खेंचाण होने लगता है, कम से कन तीन से चार मास तक ये क्रियाए चालुं रहने के बाद एकदम से शरीर मे मूलाधार चक्र पे बहुत भारी दबाव-खेंचाण-धबकारे बढ जाएगा पुरे शरीर मे एकदम ध्रुजारी (वाईब्रेशन) बढ जाएगी जैसे बहुत ठंडा मौसम मे मानव को ठंड लगने से ध्रुजारी होती है बिलकुल वैसे ही ध्रुजारी बढकर एकदम आंचके के साथ पहेला चक्र का वेधन हो जाएगा. पहले चक्र मे वराळ घुमने लगेगी पहेला चक्रमे वराळ गोल घुमते-घुमते अपनेआप उर्जा मे रुपांतर होने लगती हैं. सभी चक्रो खुलने के समय ऐसी ही थियरी से सभी चक्रो का वेधन होता है ये आपको रीतसर का अनुभव होगा जब वराळ उर्जा के रुप मे रुपांतर होती है तो वो एक शक्ति बन जाती है जैसे की ईलेक्ट्रीक मोटर मे उर्जा (बीजली) घुमती है तो वो एक शक्ति के रुप मे प्रगट हो जाती हैं और मोटर चालुं होकर सभी मशीन को कार्यवाहित कर देती हैं वो ही थियरी शरीर में होती हैं उर्जा एक बीजली को ही कहा जाता है. पहले चक्र पे वो उर्जा एक-दो मास तक रहेगी और पूरी तरह से एक-दो मास मे मूलाधार चक्र को जागृत करके बाद मे वो उर्जा आगे जाकर दुसरे चक्र पे अटक जाएगी और दुसरा चक्र पे दबाव-खेंचाण-धबकारे करने लगेगी दुसरा चक्र खुलने मे वो उर्जा को फिरसे चार से पांच मास तक का समय लगेगा, जब पहेला चक्र खुलता है तब ललाट पे प्रकाश लाल रंग का दिखने लगेगा जैसे सुबह का उगते सूरज का रंग है वैसा ही रंग आज्ञाचक्र पे दिखेगा ईसिलिए पहेला चक्र का रंग लाल कहा गया है. पहेला चक्र खुलके समय ही शरीर मे अचानक पुरे शरीर मे शक्ति प्रसर जाएगी आप आनंदित हो जाओगे. ईतनी शक्ति आपके शरीर मे उस समय प्रगट होगी की आपको आसन पर से खडा होकर कुदने का मन हो जाएगा लेकिन ऐसा कभी मत करना आसन पे से कभी खडा मत होना सिर्फ आपको ये सभी कुदरत का नजारा को अनुभव करना है अगर खडे हो गए आप तो ईसिमे शक्ति विपरीत काम करेगी, पागल होने की संभावना पेदा हो जाएगी, अगर तो शरीर बिगड कर रोगिष्ट बन जाएगा ईसिलिए किसिभी चक्र का जब वेधन होता हैं तब कभी भी आसन से खडा मत होना सिर्फ अनुभव करते रहना है.
दुसरे चक्र का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करती हैं और वहां से धीरे-धीरे आपका शरीर निरोगी बनता जाएगा. यहां से आपके शरीरमे धीरे-धीरे आनंद प्रसारित होता जायेगा और वहां से ही आपके दुसरा शरीर जो “”” प्राणशरीर “”” कहा जाता है. वो प्राणशरीर के भी विकास की यात्रा यहाँ से शुरु होकर आज्ञाचक्र जब खुलेगा तबतक आपका प्राणशरीर का पूरा विकास हो जाता है, पहला चक्र जब खुलता है तब ललाट के स्थान पर बिजली का चमकारा होने लगेगा जैसा बारिश मे बिजली का चमकारा होता है बिलकुल वैसे ही चमकारा आपको आज्ञाचक्र पे दिखेगा ये ही क्रिया के लिए गंगासती, पानबाई ने उनकी लिखीत भजन वाणी मे उल्लेख किया है की, ” बीजली के चमकारे मोतीडा परोवे पानबाई अचानक अंधारा थाय रे “”. ये वाणी उसने ये ही पहेले चक्र पे आधारित लिखा है. यहां से आपका मन धीरे-धीरे स्थिर होने की गति पकडता जाएगा. पहले चक्र पे आपको 6 सिध्ध्यां प्रदान होती हैं.
(1) निरोगी शरीर, (2) उर्जा उत्पादन, (3) आनंद की शुरुआत, ‘(4) प्राणशरीर का विकास होना, (5) शरीर स्फूर्तिमय बनना, (6) मन एकाग्रता की ओर बढना, ये 6 प्रकार की सिध्ध्यां की शुरुआत अापको पहले चक्र से शुरु हो जाती हैं. पहेला चक्र मूलाधार जननेद्रिय और गुदा द्वार के बिच मे स्थापित है. पहेला चक्र खुलने के बाद चार से पांच मास आप योग-प्राणायाम-ध्यान की प्रक्रिया चालुं रखोगे बाद मे दुसरा चक्र मे अपनी करोडरज्जुं के प्रथम मणके के स्थान पे स्थापित है वहां चार से पांच मास तक दबाव-खेंचाण-आंचके का प्रभाव रहेगा बाद मे एकदम से आंचकीओ के साथ आपका दुसरा चक्र जीसको मानव स्वाधिष्ठान चक्र से जानते है और दुसरे चक्र का नेतृत्व जल तत्व का होता है ये चक्र भी खुलते समय शरीर मे एकदम स्फूर्तिमय बनकर बहुत शक्ति पेदा हो जाएगी खुलते समय लेकिन आपको खडा कभी मत होना सिर्फ शरीर मे जो होता है वो साक्षीभाव से देखते ही जाओ देखते ही जाओ ये चक्र खुलने से आपको आज्ञाचक्र पे पीले रंग का प्रकाश दिखने लगेगा. ईसिलिए दुसरे चक्र का रंग पीला(yellow) कहा गया है. यहां से आपको पीला और लाल दो रंग का प्रकाश दिखना शुरु हो जाएगा. धीरे-धीरे प्रकाश की उजाला मे बढोतरी होती जाएगी और शरीर के मांस-पेशीयो मे बहुत सारा फेरफार होता जायेगा. मांस-पेशीयो तुट रही हैं ऐसा आपको अनुभव होगा कमर से उपर के भाग मे मस्तक तक आंचकी-खेंचाण आने की यहां से शुरुआत हो जाएगी जो बीजल का चमकारा दिखता था वो धीरे-धीरे स्थिर होता जायेगा और प्रकाश के बीच मे आपको एक अंधेरी काले रंग की छाया जैसा दिखेगा. जैसे बोगदा हो ऐसा ही आपके दोषो यहां से धीरे-धीरे लुप्त होता जायेगा, स्थिर होता जायेगा आपके स्वभाव मे परिवर्तन होता जायेगा यहां से तमोगुणी स्वभाव नष्ट होकर रजोगुण की तरफ आगे बढेगा और यहां से आपमे समानता प्रगट होती जाएगी भेदभाव मिटता जाएगा यहां आपको 4 प्रकार की सिध्ध्यां प्रदान होती हैं.
(1) समानता, (2) दोषो पे स्थिरता ,(3) गुण मे परिवर्तन, (4) प्रकाश स्थिरता की तरफ.
ये चार प्रकार की सिध्ध्यां यहां से आपको उपलब्ध होती जाती हैं अब दुसरा चक्र खुलने के बाद आप योगक्रिया जारी रखने के बाद चार से पांच मास तक आपकी उर्जा तीसरे चक्र मणिपूर चक्र पे अथडाव-दबाव-खेंचाण- करती रहेगी उसके बाद जोरदार आंचकी-खेंचाण – ध्रुजारी के साथ आपकी उर्जा तीसरे चक्र मणिपूर चक्र का वेधन करेगी जब कोई भी चक्र का वेधन होता है तब पूरे शरीर की सभी स्नायुं को खेंचाण वो चक्र की तरफ दबाव से खेंचाण होगा. अतिशय दबाव से खेंचाण होता है तब कोईभी चक्र खुलता है ये सभी बातो का आपको शरीर मे रीतसर का अनुभव होता है. तीसरे चक्र का रंग हरे रंग का होता है यहां से आपको आज्ञाचक्र पे हरे रंग का रंग दिखने लगेगा यहां से आपको तीन रंग का लाल-पीला-हरे रंग ये तीन रंग का प्रकाश दिखने लगेगा. आपकी जठराग्नि बिलकुल प्रदीप्त हो जाएगी, आपकी रसधात्वाग्नि और मांस-पेशीयो धात्वाग्नि भी बिलकुल प्रदीप्त हो जाएगी आपकी वाणी-पवित्र और निर्मल बन जाएगी आपकी बोलनेनकी स्टैईल मे फेरफार होगा, धीमी गति की बोलने की स्टाईल हो जाएगी, आवाज थोडा सा पहाडी होगा आपकी जुबान पर सरस्वतीजी का वास होगा आपकी नेगेटिव विचारधारा यहां से नष्ट होती जाएगी और आप एक संशोधनकारी विचारधारा आपकी बनेगी. ये चक्र का नेतृत्व अग्नि तत्व करता है. तीसरा चक्र खुलने से आपको 5 प्रकार की सिध्ध्यां प्रदान होती हैं.:— (1):- जीभ मे सरस्वती बिराजमान,
(2):- जठराग्नि प्रदीप्त
(3):- आत्मज्ञान की शुरुआत
(4):- वर्तन-वाणी-विवेक मे फेरफार
(5):- नेगेटिव विचार नष्ट की शुरुआत
ये उपर की सिध्ध्यां और मणिपूर चक्र खुलने से ये प्रकृति आपको प्रदान करती हैं यहां से आपकी आत्मज्ञान की यात्रा की शुरुआत हो जाती है.
अब तीसरा चक्र खुलने के बाद जब आप योगक्रिया जारी रखोगे तो चार से पांच मास तक आपकी उर्जा चौथे चक्र अनाहत चक्र पे दबाव-खेंचाण-अथडामण होता रहेगा ईसिके बाद बहुत भारी खेंचाण से आपका चौथा चक्र अनाहत चक्र खुल जाएगा. यहां से आपको सफेद रंग का प्रकाश दिखेगा ईसिलिए अनाहत चक्र का रंग सफेद कहा गया है. ईसिका नेतृत वायुं तत्व करता है. ये चक्र खुलने के बाद आपको एक काली छायावाली कोई समाधि दिखने लगेगी वो समाधि को आपको मानसिक पूजा हरदिन कर लेनी आपका ध्यान यहां से गाढ ध्यान होने लगेगा आपकी आंतरिक नजर आज्ञाचक्र पे चीपक जाएगी और मस्तक मे ठंडी लहेरे उत्पन्न होती जाएगी. यहां से आपका आत्मा उजागर हो जाएगा. आत्मा जागृत हो जाता है और आप संपूर्ण आत्मज्ञानी बन जाओगे. यहां आपको 4 प्रकार की सिध्ध्यां प्रकृति प्रदान करती हैं.वो नाचे मुजब है.
(1):- आध्यपुरुष का समाधि के रुप मे दर्शन
(2):- गाढ ध्यान
(3):- आत्म जागृति
(4):- आत्मज्ञानी.
ये चार प्रकार की सिध्ध्यां आपको प्रकृति प्रदान करती है और आपको यहां से चार रंग का प्रकाश स्थिर अवस्था मे दिखने मिलेगा ये चोथे चक्र जागृत हो जाएगा.
चौथा चक्र जागृत होने के जागृति के बाद जब आप पांच से छे मास योगक्रिया जारी रखोगे तब एकदम दबाव-खेंचाण और आंचकी के साथ पांचवा चक्र विशुध्धचक्र का वेधन हो जाएगा ये चक्र का नेतृत्व आकाश तत्व करता हैं ईसिका रंग आसमानी रंग कहा गया है. यहां आपको ललाट के स्थान पे बीच मे भोयरा जैसा दिखेगा और भोयरा के चारो तरफ लाल रंग का प्रकाश दिखेगा ईसिको ही “”” भवर गुफा””” कहते हैं वो भवर गुफा का अब आप हरदिन दर्शन मिलेगे यहां से आपका प्रकाश किसिभी आकार या तो चित्रो टाईप मे आपको प्रकाश दिखने लगेगा या नी की आपकी उर्जा यहां वंटाळ के रुप का आकार का रुप पकडने लगेगी, आपकी उर्जा का प्रकाश आपके आज्ञाचक्र से शरीर की बाहर वंटोळ के रुप मे बाहर निकलता हैं ऐसा आपको अनुभव होने लगेगा. “”हर मानव का खुद का ब्रह्मांड होता है “” वो आपका खुद का ब्रह्मांड आपको यहां से हरदिन दिखने लगेगा जो ब्रह्मांड हरकोई मानव को अपनी मस्तक की उपर तीन फीट के अंतर पे होता है वो ब्रह्मांड आपको दिखने लगेगा वो ही ब्रह्मांड मे से सुक्ष्म जगत का राजमार्ग खुलता है वो ही ब्रह्मांड मेसे आकाशगंगा दिखने का राजमार्ग खुलता है. आपका मन स्थिर की गति पकड लेगा. अापका मन और आपका शरीर योगवाही बन जाएगा. मन दुरदर्शी बनता है आप सामनेवाले मानव का चहेरा पढने की कला आपमे प्रगट हो जाएगी. आपका संयम मिट जाएगा आपको ये प्रकृति का और सातेय तत्वो के ज्ञान की यहां से शुरुआत हो जाएगी. आपका दुश्मन वर्ग अपनेआप नाश होता जायेगा पूरे ललाट पे आपको अलग-अलग रंग का प्रकाश पुरे ललाट पे फैल जाएगा. आपका पुरा शरीर जडत्व अवस्था मे आ जाते है. दोनो कांधे से लेकर मस्तक के साथ बहुत खेंच-आचकी आनेकी शुरुआत हो जाएगी यहां आपको 6 प्रकार की सिध्ध्यां ये प्रकृति प्रदान करती है. वो नीचे मुजब है.
(1):- दुश्मनो का नाश
(2):- मन और शरीर योगवाही
(3):- प्रकृति और तत्वो का ज्ञान
(4):- संचय मिटना
(5):- आपके ब्रह्मांड का दर्शन
(6):- दुरदर्शी.
ये 6 प्रकार की सिध्ध्यां आपको प्रकृति प्रदान करती है.
अब योगक्रिया मे आगे जारी रखने के बाद सात से आठ मास तक छठ्ठे चक्र आज्ञाचक्र पे दबाव रहेगा सायद छठ्ठे चक्र खुलने मे एकाद साल से भी ज्यादा समय जाता है. बाद मे बहुत दबाण-खेंचाण और आंचकी के साथ आपका छठ्ठा चक्र जागृत हो जाएगा ये छठ्ठा चक्र जागृत होने के बाद उनको कार्यवाहित करना पड़ता है. कार्यवाहित करे बिना छठ्ठा चक्र कभी काम नही करेगा ईसिको कार्यवाहित करने के लिए “” त्राटक”” कि सिध्धि करके वो त्राटक के मारफत से, मनोबल को द्रढ और मजबूत करना पडता है और आत्मबल को भी द्रठ और मजबूत करना पडता है. ईसके द्वारा ही आपका संकल्प द्रढ और मजबूत बनेगा जब तक आपका संकल्प द्रढ और मजबूत नहीं होगा तब तक छठ्ठे चक्र आज्ञाचक्र काम नहीं करेगा. संकल्प के द्वारा ही आज्ञाचक्र कार्यवाहित होता है. ईसके बिना कभी आज्ञाचक्र कार्यवाहित नही होगा ये बडा रहस्य छठ्ठे चक्र पे छुपा हुआ है ये ही गुरुचावी कहा जाती है. यहां गुरुगम्य ज्ञान के बिना आप कभी आगे नहीं बढ शकोगे यहां आपको बजरिया रंग का रंग दिखेगा बाद मे आपको यहा तीन रंग को क्रमवाईझ सिध्ध करना पडेगा. पीला-वादळी-संप्तरंगी ये तीनो रंग के प्रकाश जब आपके पास सिध्ध हो जाएगा बाद मे आपको सिर्फ सफेद प्रकाश ही दिखेगा वो सफेद प्रकाश मे थोडा सा आसमानी जैसा रोड होगा ऐसा सफेद प्रकाश ही दिखे और कोई रंग का नही ईसिके बाद ही आपको आज्ञाचक्र कार्यवाहित करना पडता है. दुसरे रंग का प्रकाश दिखता है तब आपका आज्ञाचक्र कभी कार्यवाहित नही हो शकता ये छठ्ठे चक्र पे आपकी उर्जा दो से तीन साल तक रहेगी उसके बाद ही सातवा चक्र सहस्त्रासार चक्र वेधन होता है तब समाधि लगती है. समाधि लगने के बाद आवन-जावन समाधि की शुरु हो जावे बाद मे सारी सिध्ध्यां आपके चरणो मे होगी ये प्रकृति आपकी दासी होगी अब सातेय चक्र की गुणो का वर्णन करने की कोई जरुरत ही नही रहती प्रकृति ही आपकी दासी बन जाती हैं तो बादमे क्यां बाकी रहेवे आप सिध्धपुरुष बन जाते हैं.
प्बरणाम महोदय. हुत खूब. कृपया इसे मनोवैज्ञानिक या वैज्ञानिक रूप से समझाएं कि कुण्डलिनी जलेबी के आकार में कैसे बनती है. गुरु के रूप वाला मानसिक चित्र भी तो कुण्डलिनी ही है. वह तो पुरुषाकार में ही रहेगा. वह कैसे जलेबी के आकर का बन जाएगा?
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धीरे-२ चक्रों का क्रमवार खुलना तो मैंने महसूस नहीं किया. शरीर के चक्रों वाले भाग में अपने गुरु के चित्र/कुण्डलिनी को अनुभव किया. सीधे ही सहस्रार में फिर कुण्डलिनी को जागृत पाया. तंत्र भोग/यौनयोग से ही पूरी सहायता मिली. चक्रोंन का जागरण में आजतक समझ नहीं पाया. कृपया स्पष्ट करें. धन्यवाद.
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