कुण्डलिनी जागरण भाग-4

भाग:-4
कुंडलीनी शक्ति क्यां काम करती हैं

–गगनगीरीजी महाराज
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👉 जब कोई मानव योगक्रिया करते हैं तो उनकी आंतरिक नजर आज्ञाचक्र पे रखकर हरदिन ध्यान, प्राणायाम करेगा तो धीरे-धीरे उनका प्राण-अपान छाती के भाग मे दोनो एकत्रित होते ही छाती मे उर्जा का विस्फोट होता है. उर्जा को चेतना भी कहा जाता है. वो चेतना प्राणायाम के माध्यम से छाती के उपर के भाग मे मस्तक की और चढने लगेगी जब मस्तक मे चेतना एकठी होगी तब वो फिरसे मस्तक से नीचे की और ठंडी लहेरो के रुप मे नीचे उतरने लगेगी और धीरे-धीरे पूरे शरीर मे फैल जाएगी तब आपका शरीर बिलकुल हलकासा और स्फूर्तिमय बन जाएगा और फिरसे वो ठंडी लहेरो के रुप मे प्राणायाम के माध्यम से पैरो से लेकर उपर चढने लगेगी और कमर तक आकर ठहर जाएगी. कमर से ये प्राण-अपान की चेतना कुंडलीनी शक्ति को योनि के विर्य की बाष्पीभवन से निकलती बाष्प को साथ मे लेकर उपर चढने लगेगी. पहले मूलाधार चक्र का वेधन करेगी ये बाष्प अवकाशी रोड की सफेद रंग की होती है. उपर चडकर हरेक चक्र क्रमवाईझ पांच से छे मास की अंतराल पे एक-एक चक्र का वेधन करते करते मस्तक मे एकठी हो जाएगी अब ये टाईम पे मस्तक मे कुल तीन प्रकार की एकरुप होती है. (1):- प्राण-अपान की उर्जा, (2):- दशेय ईन्द्रियाकी शक्ति की उर्जा, (3):- कुंडलीनी शक्ति की उर्जा .ये तीनो शक्तियां की उर्जा जब मस्तक मे एकरुप एकत्रित होकर बहती है तब मानव को गाढ ध्यान लग जाता है. जब गाढ ध्यान मे मानव जाएगा तब वहां तीन उर्जा की शक्ति के साथ चौथी उर्जा चक्रो की शक्ति की उर्जा इसिमे सामिल हो जाती है तब मन बिलकुल निर्विचार बन जाता है ये चारो उर्जा जब मिक्ष होकर एकरुप बनती है ये क्रिया को ही मन को आत्मा मे स्थित हुवा कहते हैं लेकिन यहां आपको एक बात का खास ख्याल रखना पडेगा. धारणा के मारफत से आपका आंतरिक मन को जागृत रखना पडता है नहीं तो आपको मुर्छावस्था आ आएगा अगर तो कायम के लिए भी चले जाओगे और संकल्प भी छोडना पडता है लेकिन समय समाधि मे जाना है ये बात का संकल्प भी छोडना पडता है कि कितने समय समाधि मे जाना है. ये बात का संकल्प भी छोडना पडता है नहीं तो आप वापिस नहीं आ शकते मित्रो योग क्रिया मे जो आठ आयाम है ईसिमे एक आयाम धारणा की भी है, अब आपको ख्याल आगया होगा की धारणा का क्या महत्व है. ऐसे ही आठो अंगो का अलग-अलग महत्व है, सभी आयाम मे अलग-अलग पोस्ट मे खुलासा करता रहता हुं.

बाह्य मन स्थिर होकर आंतरिक मन को धारणा के मारफत से जागृत रखते हैं तब चारो उर्जा दशमे द्वार पे सहस्त्रासार चक्र मे बहुत दबाव लाते है तब मानव को समाधि लगती है, जैसा आपका संकल्प वैसी ही समाधि और समाधि का समय रहेगा. समाधि के बाद ही संकल्प शक्ति ही काम करती हैं और कोई शक्ति नहीं वो संकल्प शक्ति ही मन का ड्राइवर बनती है और समाधि मे जाने के बाद संकल्पो के माध्यम से सुक्ष्म शरीर का विकास और अलग करने की क्रिया होती है. इसके पहले कभी सुक्ष्म शरीर का विकास और अलग नही हो शकता. जब आप समाधि मे जाने की तैयारी होगी तब आपका आसन का समय तीन घंटे के आसपास होगा, तीन घंटे का आसन जब आपका सिध्ध होगा तब ही समाधि लगती है, ईस्के पहले कभी समाधि भी नही लगेगी, वर्तमान मे जो सभी साधको उर्जा की बाते फेसबुक पर करते रहते हैं वो उर्जा सिर्फ दशेय ईन्द्रियाकी और प्राण-अपान की ही सबको दिखती है ये उर्जा दिखने से साधक को ऐसी भ्रमणा हो जाती हैं कि कुंडलीनी शक्ति जागृत हो गई है. यहां साधको का बहुत बड़ा भ्रम मे है ये उर्जा कभी स्थिर नही रहती और कुंडलीनी जागृत होती है तब चक्र के आधिन उर्जा कलर मे दिखती हैं और तीन प्रकार की उर्जा जब एकरुप होकर बहती है तो वो उर्जा सफेद कलर मे दिखती है. यहां प्राणायाम की श्वास लेनेकी और श्वास छोडने की लंबाई की गति 40 से 45 सेकेन्ड तक होती है इसि तरीके से जब कोई आत्मा समाधि मे जाकर आवन-जावन करने लगेगी तब वो आत्मा शक्तिशाली बनता है वो आत्मा परमात्मा स्वरुप धारण करता है. परमात्मा की समानता कहा जावे समाधि का मतलब आधि-व्याधि-उपाधि तीन प्रकार की धि यहां निकल जाती है. उनको समाधि कहा जावे सिर्फ धारणा के मारफत से जो आंतरिक मन चेतन अवस्था मे रहता है. उसीको ही जागृत अवस्था कहा जाता है. समाधि मे और सिध्धियो के लिए ये ही श्रेष्ठ अवस्था है. यहां से ही आपको संकल्प के मारफत से एक से लेकर अनेक सिध्ध्यां हांसल होती है लेकिन ये सिध्ध्यां के बारे मे भी साधक बहुत मानसिक भ्रमणा मे है ऐसी लोकवायका है कि कुंडलीनी शक्ति जागृत वाले मानव सभी प्रकार के काम करते हैं ये बहुत बड़ा भ्रम कुंडलीनी के बारे मे हैं. सूनी सुनाई बातो से लेकर कुंडलीनी की बारे मे बहुत भारी अफवाए फैलाई हुई है ये सभी अफवाए पवन के वायरा है और कुछ नहीं.

कुंडलीनी शक्ति कोईभी मानव कि मानसिकता का बदलाव नही कर शकती अगर करती होगी तो ईसका सबुत शास्त्रो मे है राम-रावण का युद्ध कभी नहीं होता, महाभारत का युद्घ कभी नहीं होता, देव-दानव का युद्ध कभी नही होता. वर्तमान मे भारत-पाकिस्तान की युद्ध की तंगदिली कभी नहीं होती. विश्वमे ये आतंकवाद कभी नहीं होता और लोकतंत्र के चूनाव भी कभी नहीं होता. शास्त्रो के युद्धो मे सभी योद्धा सिद्ध पुरुष ही थे तो वो कुंडलीनी शक्ति मे माध्यम से सामनेवाले की मानसिकता मे बदलाव ला शकते थे लेकिन ये बदलाव नही ला सके ये ही सबसे बड़ा सबूत मानव के सामने है कि कुंडलीनी शक्ति कभी किसी भी मानव कि मानसिकता मे फेरबदलाव नहीं कर सकती. व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए भी कभी सामनेवाले मानव के उपर ये शक्ति का उपयोग कभी नहीं काम करती. किसी भी मानव के कर्म मे कभी कोईभी प्रकार का फेरफार ये कुंडलीनी शक्ति नहीं कर सकती किसी का भी कर्म नष्ट नही कर सकती, खुदका का भी पूर्व जनम मा कर्म नष्ट नही कर सकती. कुंडलीनी जागरण वाला मानव ऐसा चाहेगा की मैं मेरे सेवक को धनपति बनादुं तो ये बात कुंडलीनी से शक्य नहीं होती लेकिन कुंडलीनी जागरण वाले मानव की किसिभी मानव निःस्वार्थ भाव से सेवा करेगा तो ये प्रकृति का वरदान हैं कि सेवा करनेवाले मानव दुःखो कष्टो प्रकृति अपनेआप नष्ट कर देती है और कुंडलीनी जागरण वाले मानव की कोई मानव निःस्वार्थ भाव से सेवा करता है तो मानव कुंडलीनी जागरणवाले मानव कि आत्मा मे बस जाता है. ऐसी स्थिति कोईभी मानव कर लेगा तो उनके पास से काल को भी दूर रहना पडता है. कुंडलीनी शक्ति का ये प्रभाव होता है. निःस्वार्थ भाव से सेवा करनेवाला मानव कहीं भी फस जाता है. कोईभी प्रकार का संकट आता है तब वो कुंडलीनी जागरण वाले मानव का स्मरण करेगा तो ये प्रकृति कुंडलीनी जागरण वाले मानव का ही रुप धारण करके उनको उगार लेती है .ये काम कुंडलीनी की प्रभाव से प्रकृति करती है. कुंडलीनी जागृत वाला ऐसा चाहेंगे तो उनसे कुछभी नहीं होगा सभी प्रकार के काम ये प्रकृति करती है. कुंडलीनी शक्ति के उपर ये प्रकृति का वरदान हैं क्युंकि कुंडलीनी शक्ति ये एक दैवी शक्ति के रुप मे ही है. कुंडलीनी जागरणवाले मानव की सामने कोई मानव अपना दर्द-कष्ट-तकलीफ की बात करेगा और कुंडलीनी जागरण वाले मानव का हदय ये बात से द्रवि उठेगा तो समज लेना वो मानव की सारी मुश्किले कल से दूर होने लगेगी लेकिन संत का हदय द्रवी उठना चाहिए संत का हदय द्रवि उठता है तो कुंडलीनी का प्रभाव अपनेआप ही काम करेगा लेकिन संत के कहने से नहीं होगा. सिर्फ उसका हदय द्रवि उठना चाहिए तो अपनेआप प्रकृति को ये काम करना ही पडता है ये ही कारण से सभी मानव को भ्रमणा है कि संत सभी प्रकार के काम करते हैं ये बिलकुल गलत भ्रमणा है. कुंडलीनी शक्ति का प्रभाव और प्रकृति मिलकर ही काम करते हैं अगर कोई संत ऐसा चाहेगा की मैं मेरे सेवक को धनपति बनादुं तो ये शक्य नहीं है लेकिन कुंडलीनी जागरण वाले मानव ऐसा प्रभाव होता है की उनका खुद का सारा काम प्रकृति करती है. इसिमे कोईभी प्रकार का शक नहीं ये सभी प्रकार का मेरा खुदका अनुभव है तभी मे ये सत्य को उजागर कप रहां हुं क्युंकि मानव के ओर साधको के मन की भ्रमणा हट जावे कुंडलीनी जागरण वाले का कभी किसि भी प्रकार के काम मे कभी रुकावट नही आएगी क्युंकि कुंडलीनी जागरण वाले मानव की रक्षण प्रकृति करती है ऐसे मानव कि सभी प्रकार से रक्षण करना ये प्रकृति की फरज होती हैं और प्रकृति उनका रक्षण करती है. कुंडलीनी जागरणवाले मानव को किसिने धाक-धमकी या तो बैईज्जती का का चेलेन्ज किसिने दिया तो उसका चेलेन्ज प्रकृति स्वीकार कर उनको चेलेन्ज करने वाले मानव को चेलेन्ज के अनुसार प्रकृति अवश्य देती है. ऐसी सभी प्रकार की घटनाए बनती है तो मानव के मन मे एक लोकवायका मजबूत हो जाती हैं कि ये संत चमत्कारीक हैं. संत चमत्कारीक नहीं होता लेकिन कुंडलीनी शक्ति का प्रभाव चमत्कारीक प्रकृति के मारफत से बन जाता है और ऐसी घटनाए घटीट हो जाती हैं. ये है कुंडलीनी शक्ति का प्रभाव. ये प्रभाव से ही संत का बडा नाम हो जाता है. मेरे जीवन मे बहुत सारी ऐसी घटनाए है कि ये घटनावाले मानव भी मौझूद है. ये कुंडलीनी शक्ति के बारे मे ये उपरोक्त सभी बातो का मैंने मेरा ही अनुभव शब्दों मे अंकित किया है. कम ल्खा है लेकिन ज्यादा लिखनेकी कौशिस मैने नहीं किया. ये सभी कारणो से ही ज्ञानीजनो कह गए हैं की संतो के चरणो मे स्वीकृति अपनालो और उनके हदय मे बिराजमान हो जाओ लेकिन निःस्वार्थ भाव से होना चाहिए. स्वार्थ की भावना से कुछभी नही हो शकता क्योंकि ये कुंडलीनी शक्ति ये एक सत्य का उजागर है. सत्य के सामने कभी असत्य नही टीकता. ये बात बिलकुल निर्विवाद सतातन सत्य है. आपको कोईभ काम संत के पास से लेना हैं तो एक बार आप संत का हदय को पीगलदो संत नहीं चाहेगा तो भी आपका काम प्रकृति अवश्य कर देती है. ईसिमे कोई शक नहीं है.लेकिन आप जो संत की सेवा करते हो ये कोनसे भाव से करते हो ये सभी बातो का संत को अच्छी तरह ज्ञान होता है क्युकिं संत दुरदर्शी होता है. (क्रमश:)

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